जब #हाजी_पीर पर, चढ़ गये #वीर_अहीर RDY
52 वर्ष पहले, आज के ही दिन 28 अगस्त 1965 को हाजी पीर के रण-खेतों में वीर अहीरों का #जंगी_नारा " #दादा_किशन की जय"
28अगस्त1965, आज ही का दिन था जब 1st PARA (SF) के 120 वीर अहीर उस लड़ाई के सबसे कठिन मोर्चे "हाजी पीर" को जीत लाये थे।
हाजी पीर 1965 की लड़ाई का सबसे मुश्किल और महत्त्वपूर्ण कब्ज़ा माना जाता है जो 18 साल से पाकिस्तान के कब्जे में था। पाकिस्तान ने उस मोर्चे पर पठानों को तैनात कर रक्खा था।
भारत ने उसे जीतने के लिए 4 कोशिशें की। राजपूत, जाट, सिख और डोगरा सैनिकों के प्रयास असफल रहे और भारी नुकसान भी हुआ।
18 सैनिक मारे गए और 100 से ज्यादा घायल हुए। पहाड़ों से शहीद और घायल सैनिकों को निकालना बहुत भारी हो गया।
भारत ने हाजी पीर लाने के प्रयास बंद कर दिए।
18 सैनिक मारे गए और 100 से ज्यादा घायल हुए। पहाड़ों से शहीद और घायल सैनिकों को निकालना बहुत भारी हो गया।
भारत ने हाजी पीर लाने के प्रयास बंद कर दिए।
1st PARA(Special Force) ताबड़तोड़ कब्ज़े करती जा रही थी। उन्होनें सैंक पर कब्ज़ा किया, बदौड़ी पर किया, पहाड़ी Point 1033 पर पर कब्ज़ा किया।
मेजर दयाल सिंह 1st PARA (Special Force) के Commander थे। कंपनी के दो सूबेदार थे राव अर्जन सिंह और राव श्रीचंद। जब उन्हें हाजी पीर का पता चला तो वो मेजर से बोले मेजर साब, आप जनरल साब से बोलो हम हाजी पीर से पठानों को भगाकर तिरंगा फहरा देंगे।
मेजर दयालसिंह को पता था कि अगर हाजी पीर मौत का कुआं है तो अहीरों का भी शेर सा कलेजा है।
मेजर दयालसिंह को पता था कि अगर हाजी पीर मौत का कुआं है तो अहीरों का भी शेर सा कलेजा है।
मेजर दयाल सिंह ने हाजी पीर पर जाने के लिए volunteer किया। फ़ौज की Northern Command के कमांडर ने हां तो कर दी, पर ये भी बोल दिया खतरा कि बहुत है वहां और अभी-अभी हमें बहुत Heavy Casualities भी हुई हैं।
हाजी पीर पर हमले की हां सुनते ही कई दिन से शक्करपारे और मठरी के सहारे बैठे अहीरों के मन में जोश आ गया कि दुश्मन को मारेंगे भी ओर उनका राशन भी कब्ज़ाएंगे।
रात को 10 बजे अहीर "दादा किशन की जय" बोलते हुए हाजी पीर पर जा चढ़े। तेज़ पानी बरस रहा था, और आग भी। पानी बह भी रहा था, और खून भी।
सारी रात ना पानी रुका, ना आग और ना ही खून। तीनों मिलकर कीचड़ बन गया। अहीर सैनिक पठानों को मार भगाते पर उधर से Backup आ जाता।
हाजी पीर कठिन से कठिनतम हो गया, खंडे(तलवार) की धार पर चलने के बराबर हो गया।
हाजी पीर कठिन से कठिनतम हो गया, खंडे(तलवार) की धार पर चलने के बराबर हो गया।
सुबह 10 बजे बारिश रुकी, आग भी, और लड़ाई भी। पर खून बह ही रहा था। कीचड़ लाल था। पठानों की लाशें थीं और घायल अहीर मेजर दयाल सिंह का wait कर रहे थे तिरंगा फहराने का।
हाजी पीर अहीरों ने जीत लिया था। 18 साल बाद पुंछ-उड़ी मार्ग भी खुल गया। खूब जश्न मना। पर अहीरों का कहीं नाम नहीं हुआ।
पर वो जश्न ज्यादा दिन नहीं चल पाया।
ताशकंद समझौते में हाजी पीर पाकिस्तान को लौटा देना पड़ा और लालबहादुर शास्त्री जी का वहीं ताशकंद में देहांत हो गया।
ताशकंद समझौते में हाजी पीर पाकिस्तान को लौटा देना पड़ा और लालबहादुर शास्त्री जी का वहीं ताशकंद में देहांत हो गया।
#गूँजा और #दिन-दहाड़े हाजी पीर पर चढ़ गये थे छोरे अहीरों के i
अजेय हाजी पीर पर वीर अहीर , अपने सरदार #सूबेदार #राव_अर्जुनसिंह जी और सूबेदार #राव_श्रीचंद सिंह जी की ललकार पर पाकिस्तानी फौज के पठानों पर चढ़ गये थे और सुबह 10 बजे खून से लथपथ यदुवंशियों ने हाजी पीर की पर तिरंगा फ़हरा दिया था i

रण-बँके अहीरों ने शहादत दी ,राव उमराव सिंह जी वीर चक्र जैसे मर्दों ने 1965 की जंग के सबसे अहम मोर्चे को अपने खून से रंग दिया i
जब सिक्खों,डोगरों,
फिर वो अपने बाकी पलटनों को बुला लाये और हाजी-पीर को हिन्दुस्तान से वापिस लेने के लिए हमले-पर हमले करते रहे ,लेकिन अहीर डटे रहे i मुट्ठी भर अहीर उस मोर्चे पर खून से लथपथ घायल अवस्था में हर पाकिस्तानी हमले को तोड़ते रहे और दुश्मन को तबाह कर दिया i
1947 के बाद उड़ी-पुंछ मार्ग फिर से खुल गया था i इस विजय ने हिंदुस्तान की फतेह के रास्ते खोल दिए i आज हर जगह पर हाजी पीर फतेह का फोटो है , लेकिन देखिये दुर्भाग्य , मेरी मर्द कौम का कहीं जिक्र नहीं है i
जब तक पृथक अहीर रेजिमेंट न होगी , तब तक अहीर-शौर्य को इतिहास के पन्नों में उचित स्थान नहीं मिलेगा i
सूबेदार राव अर्जुन सिंह जी और उसके मर्द अहीरों को शत-शत नमन i
Rao'z of india™ Official
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Admin-Rao Dheeraj Nuniwal
Gurgaon Haryana
अहीर रेजिमेंट हक से
जय यदुवंश
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा
Add me as a contact on YouTube. https://youtu.be/addme/V2CRVWcCpQHw8v-KY1Nd0Q7tttC8xw
ReplyDeleteजय यदुवंश