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Showing posts from November, 2019

ईस्लाम ना अपनाने पर खिलजी ने देवगिरी के राजा को जलते तेल में डाल दिया। Yadav of Deogiri।Rao'z of india।RDY।

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Rao'z of india  #AhirRegiment आज बात करेंगे भारत के सबसे महान हिंदू सम्राट देवगिरी साम्राज्य के अंतिम शासक   हरपाल देव यादव की जिनको मुस्लिम शासक खिलजी ने जलते तेल में डाल दिया तब भी इन्होंने अपना धर्म नही बदला । देवगिरि यादव राजवंश -  850 से लेकर –1334 तक कायम रहा जिसने अपने चरमोत्कर्ष काल में तुंगभद्रा से लेकर नर्मदा तक के भूभाग पर शासन किया जिसमें वर्तमान महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक, मध्य प्रदेश और गुजरात के कुछ भाग शामिल थे। उनकी राजधानी देवगिरि थी जिसका नाम मुस्लिम आक्रमणकारियो ने बदलकर दौलताबाद कर दिया था। 13वीं शताब्दी का अंतिम दौर मुस्लिम आक्रमणकारियों से ग्रासित रहा। इसी दौर में आक्रमणकारी अल्लाउद्दीन खिलजी ने आर्यवर्त को लूटने के नापाक मनसूबे से भारत विजय करने निकला था।। उस समय आर्यवर्त में देवगिरि यादव साम्राज्य सबसे बड़ी शक्ति हुआ करती थी। 1309 में जब क्रूर खिलजी ने देवगिरि को जीतने के मनसुबे से चढाई करी तब  देवगिरि साम्राज्य के सम्राट महाराजा रामचंद्र यादव थे। देवगिरि पर चढ़ाई से पहले खिलजी ने गुजरात के सूर्यवंशी वाघेला राजा कर्णसिंह को परास्त कर दिया था और कर

अहीर रेजिमेंट क्यों है जरूरी और रेजिमेंट के फायदे Rao'z of india RDY

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*# अहीर_रेजिमेंट_क्यों_जरुरी_है ?*  (सभी यादव भाईयो से अनुरोध है कि पूरा पोस्ट पढ़े और शेयर करे) • बंधुओ मै आज फौज में अहीर (यादव ) रेजिमेंट की क्या जरुरत है और इस के क्या फायदे हैं , उस के बारे में सब ग़लतफहमी दूर करने का प्रयास इस लेख के ज़रिये कलम से कर रहा हूँ – • फौज ( थल सेना ) में सिपाहियों (अफसरों और क्लर्क की नहीं )ज्यादातर भर्ती (रिक्रूटमेंट ) जाति /क्षेत्र /मज़हब के आधार पर ही होती हैi सन 1857 के संग्राम के बाद अंग्रेजो ने सोचा की अगर भारत को गुलाम बनाये रखना है तो एक ऐसी फौज खड़ी करनी पड़ेगी जिसकी निष्ठा सिर्फ उसकी जाति /क्षेत्र /धर्म पर हो न की भारत के प्रति i और इस दिशा में उन्होंने जाति/क्षेत्र और धर्म आधारित रेजिमेंट बना दी i आज फौज में तीन मुख्य लड़ने वाले अंग है – इन्फेंट्री , तोपखाना और टैंक (कैवेलरी ) – और इन तीनो अंगो और इंजिनियर विंग में तक़रीबन सारी भर्ती जाति /क्षेत्र /धर्म के आधार पर होती है i उदाहरण के लिए जैसे गढ़वाल रेजिमेंट है – गढ़वाल रेजिमेंट में सिर्फ गढ़वाली ही भर्ती किये जातें हैं (गढ़वाल उत्तराखण्ड राज्य का एक क्षेत्र है ) और डोगरा रेजिमेंट में

Why is Ahirwal Region known as Israel of India?

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Ahirwal (the abode of Ahirs). Ahirs synonyms are  Yadav  and Rao Sahab.   Rao Sahab  is only used in Ahirwal region consisting of territories of few villages of Delhi, Southern Haryana & Behrod area of Alwar district (Rajasthan). Ahir's of this region are mainly in armed forces.   Rewari, Haryana part of Ahirwal abode of Ahirs Yadav desendent of Lord Krishna and Ancient King Yadu Martial History Of Great Ahirs of Ahirwal: This splendid journey begins, in the annals of history in the early 16th century  i.e. 1527 AD, when Rao Hukum Dev Singh  ( Satnam-History ) An aristocratic Yadav noble of Rao family, laid the foundation of the Rao dynasty & established the throne over this valiant piece of land  viz.   Ahirwada *  Riyasat (Kingdom), as the first ruler of Rao's & made his headquarters at  Narnaul . Rao Ruda Singh  ( Followers of Krishna ) Rao Ramoji   Ramoji's sister Rupali was married to a Yadav Maratha Jagirdar Jadhav Rao, who had descent from

रेजांगला स्मारक के तोड़फोड़ के विरोध में शांतिपूर्वक धरना व पौधारोपण

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शहीदों के सम्मान व रेजांगला शहीद स्मारक के असमाजिक तत्वों द्वारा तोड-फोड के विरोध में धरना व पौधारोपण किया गया ।  कार्यक्रम की अध्यक्षता #राव_अजित व #टी_सी_राव द्वारा  की गयी थी ।  सभी युवाओं का कौम के प्रति प्रेम देखने लायक थी ।सभी कौमी युवाओं का कार्यक्रम में आने बहुत बहुत धन्यवाद । कार्यक्रम में अहीर रेजिमेंट के मुद्दे पर चर्चा की गई और हरियाणा के कौमी युवाओं की कार्यकारिणी का गठन किया गया ।सभी ने अहीर रेजिमेंट बनवाने के लिए तन मन धन से समर्थन करने पर सहमति जताई है  कार्यक्रम में जीतू अहीरवाल,धीरज राव नूनीवाल, रिंकू यादव,प्रदीप यादव, मनोज आफरीया,मुकूल यादव,मंजीत  ड़ागर मिसरी,देव यादव ,सचिन यादव,खजान यादव,अमन दात्रता,सरपंच गाँव चौमा आदि   सभी गणमान्य लोग की उपस्थित विशेष थी  ।Rao'z of India Family Thanks you all For giving your Valuable time and  presence for our Veer #Ahir Martyrs nd Tree planting give the new shape to our society nd Tree plantation in Rezang la is a new step for Green India swatch Bharat Share nd Support    #RDY Rao Dheeraj Nuniwal Twi

आल्हा-ऊदल==बानाफर क्षत्रिय ----Alha Udal==Banafer warriors #A_Biography Rao'z of india #RDY

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W आल्हा-ऊदल==बानाफर क्षत्रिय  ----Alha Udal==Banafer warriors #A_Biography Rao'z of india #RDY महायोद्धा आल्हा और ऊदल- --------------- --------------- ---------- वीरभूमि बुंदेलखंड जिसने एक से बढ़ कर एक शूरमा दिए जिनकी कीर्ति वीररस के गीतों में आज भी जीवित है। आल्हा, ऊदल दो वीर महाप्रतापी योद्धा भाई जिनके बारे में कहावत है कि इनसे तलवारें हार गई। आल्हा और ऊदल का पूरा नाम आल्ह सिंह और उदय सिंह था। इनके पिता बच्छराज सिंह दो भाई थे एवं उस समय उत्तर भारत के सबसे बड़े शासक चंदेल वंश के राजा बच्छराज सिंह और दसराज सिंह को अपने पुत्र की तरह मानते थे और ये दोनों चंदेल राजवंश की सेना के प्रधान सेनापति थे। आल्हा-ऊदल के वंश की उत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों का ये मत है कि इनके पिता बच्छराज सिंह ' वनाफर ' कुल के थे जिसकी उत्पत्ति वनाफ़र अहीरों से हुई थी । मध्यप्रदेश में यदुवंशी अहीरों की दो शाखा बहुत प्रसिद्ध है "हवेलिया अहीर" और "वनाफर अहीर" अर्थात वनों में रहने के कारण वनाफ़र कहलाए। बच्छराज सिंह का विवाह उस समय ग्वालियर के हैहय शाखा के यदुवंशी अह

नसीबपुर के नुनीवाल---अहीरवाल के अहीर Rao'z of india RDY

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  नसीबपुर  के नुनीवाल---अहीरवाल के अहीर   सन 1585 में अकबर की सेना आमेर के राजा मान सिंह के नेतृत्व में काबुल पर हमला करने गयी थी i इस सेना में लगभग आठ - दस हजार अहीर लड़ाके भी राव रणमल सिंह जी नुणीवाल के नेतृत्व में थे | राव रणमल सिंह जी और उनके यदुवंशी वीरों की काबुल के युद्ध में अहम् भूमिका को देखते हुए अकबर ने काबुल फ़तेह के बाद खुश होकर उनको 52 महल की सरदारी " नारनौल की बावनी " के रूप में दी | वापस लौट कर राव रणमल सिंह जी ने इस को खुशनसीबी के तौर पर मानते हुए अपने नए ठिकाणे का नाम नसीबपुर रखा |  अपनी मदद के लिए उन्होंने मान्दी और पटीकरा के अहीर सरदारों को अपना नायब नियुक्त किया | आगे 1857 में इसी नसीबपुर के रण-खेतों में अंग्रेजों के खिलाफ उस क्रांति के महानतम युद्ध लड़ते हुए कौम यदुवंश का नाम अज़र-अमर हो गया था .... लेकिन अब विडम्बना देखिये कि काबुल फतेह में मान सिंह और उसकी फौज का ही नाम आता है ...ऐसा ही आज के दौर में भी है , हर युद्ध में यदुवंशी शहादत देते हैं लेकिन नाम किसी और का होता है i  जब तक कंधे पर नाम "अहीर" न होगा , जब