Rao Balkisan -राव बालकिशन |जिसने रोक दिया था नादिरशाह को करनाल के युद्ध में 1739

 मैं हूँ वीर भूमि, वीर वसुंधरा - अहिरवाल, आज मै अपने अति शूरवीर और परम बलशाली पुत्र राव बाल कृष्ण (बालकिशन) की दिलावरी का ब्यान करती हूँ -





राव बाल किशन सुपुत्र राव नन्द राम सिंह जी रेवाड़ी के तख़्त पर आसीन हुए और उन्होंने निहत्थे के शेर को जब मारा तो "शेर बच्चा शमशेर बहादुर " का खिताब पाया ! उनका विवाह ठीकाना नसीबपुर के अहीर सरदार रामचंद्र जी नूनीवाल की पुत्री से हुआ !

१७३९ में ईरानी लूटेरा और शासक नादिरशाह हिंदुस्तान पर चढ़ आया तो अहीरवाल की तलवारे फिर जोश में चमक उठी ! दिल्ली की फौजों के साथरेवाड़ी के पांच हज़ार मर्द कौम अहीर अपने शेर सरदार राव बालकिशन के साथकरनाल के मोर्चे पर डट गयी ! 
ईरानी और हिन्दुस्तानी सेनाये आमने-सामनेअपनी-अपनी तलवारों के जोर को तोलने लगी मैदाने जंग में यलगार हुई और कायर मुगलिया फौज दिल्ली की मैदान से भाग कड़ी हुई ,मुग़ल बादशाह और उसके सिपहसालारो के हाथ से हथियार छूट गए! 

पर सुनो नस्ल-ए -हिन्द ये कायरता का इलज़ाम मेरे वीर पुत्रों पर न लगा क्योंकि मर्द अहीर विजय या वीरगति के लिए वचनबद्ध थे ,मेरा परम वीर सपूत,तलवार और जबान का धनी शेर बच्चा शमशेर बहादुर राव बालकिशन अपने 5000 अहीर जानिसारों के साथ करनाल के रण-खेतो में अड़ के खड़ा हुआ था ! 

नादिरशाह को तब तक फ़तेह नसीब नहीं हो सकती थी जब तक अहीर के बीज ,मेरे जंगजू बेटे शमशीर लिए पहाड़ बन कर खड़े थे ! कटे हुए सरो से ,मरे हुए ऊंट और घोड़ो से ,कायर मुगलों की छूटी हुई तलवारों और हथियारों से करनाल के रणखेत पट गए थेपर फिर भी रण -बांके रेवाड़ी के- नाम "वीर अहीर" को अमर कर रहे थे ! 


और अंत क्या - एक विशाल फौज के सामने लड़ते हुए जुझार हो गया मेरा सबसे गौरवशाली ,बलशाली और तेग का धनी - मेरा वीर पुत्र राव बालकिशन अपने भाइयो के साथ ! युद्ध का अंत तमाम मर्द अहीर के जूझने केबाद हो गया ! लेकिन मुग़ल बादशाह से मुज्ज़फर-जंग बोला की राव बालकिशन फरार हो गए !
              
        

लेकिन मर्दानगी किसी की मोहताज़ नहीं थी युद्ध के बाद नादिरशाह मुग़ल बादशाह से मिला तो राव बालकिशन और उसके मर्द अहीरों की दिलावरी की तारीफ़ करते हुए ब्यान किया -"अगर फौजशाही उस बहादुर सरदार का तहेदिल से साथ देती और जंगे-मैदान से फरार नहीं होती तो आज हम को दिल्ली देखना नसीब नहीं होताबल्कि वापस ईरान लोटना मुश्किल हो जाताअगर वोहदिलावर मर्द मैदाने जंग में शहीद न हो गया होता ". 


मुग़ल बादशाह सन्न रह गयामेरे वीर पुत्र की तारीफ़ अपने दुश्मन के मुह से सुन कर और हुकुम दिया की करनाल में छतरी हो ऐसे मर्द की और राव गुजरमल को दिल्ली में सम्मानित करते हुए कहा की "राव बहादुर रेवाड़ी का नगाड़ा और डंका किला दिल्ली के दरवाजे तक बजेगा" !पांच हजारी का खिताब और नारनौल और हिसार बावनी की जागीर दी ! वीर भोग्या वसुंधरा ! अहीरवाल की तलवारों की चमक और मेरे वीर पुत्रों की दिलावरी के चर्चे - ईरान तक होने लगे !

मैं हूँ वीर भूमि अहिरवाल ...


Rao Dheeraj Nuniwal
Rao'z Of india Group

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